STORYMIRROR

Vivek Agarwal

Romance Tragedy

4  

Vivek Agarwal

Romance Tragedy

कभी ख़ुद पे कभी हालात पे रोना आया

कभी ख़ुद पे कभी हालात पे रोना आया

1 min
237

कभी ख़ुद पे कभी हालात पे रोना आया

बात निकली तो हर इक बात पे रोना आया


कभी ख़ुद पे कभी हालात पे रोना आया

बात निकली तो हर इक बात पे रोना आया


अब के बिछड़े तो न मिलेंगे हम फिर कभी

ये सोच कर के इस मुलाकात पे रोना आया


हमने देखे हैं तेरे छुप के बहाये आँसू

आज अपने नहीं तेरे सदमात पे रोना आया


हर इक लम्हे में बसी हैं यादें इतनी 

कभी दिन पे तो कभी रात पे रोना आया


हम न सीखे थे जिंदगी में चालें चलना

हर इक बाजी में मिली मात पे रोना आया


फिर उजड़ेंगे गरीबों के खेत न जाने कितने

बिना मौसम की इस बरसात पे रोना आया


लड़कियों को नहीं देते हैं क्यों पूरे अवसर

ऐसे पिछड़े से ख़यालात पे रोना आया


कभी ख़ुद पे कभी हालात पे रोना आया

बात निकली तो हर इक बात पे रोना आया।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance