खेल-खिलाड़ी
खेल-खिलाड़ी
हम सब खेल खिलाड़ी जग में
"रेफ़री" अपना एक ही है
कभी गेंद है अपने हाथ में
कभी गेंद कहीं और ही है।
भीड़ बहुत है जग में लेकिन
हर खिलाड़ी नितांत अकेला है
अपनी ही पथ पर चलता है
जीवन बस झूठा एक मेला है।
तन का चोला पहना जग में
जीना भी एक झमेला है
थक कर लौट रहा है हर हर
घर आने तक अकेला है
चलता है अपने दो पग से
दो हाथों से पकड़ता है
फिर भी यह मायावी जीवन
हाथों से खूब फिसलता है
खेल खिलाड़ी को है खेलना
खेल खिलायेगा रेफ़री,
कोई भी नर हुआ नही जो
बना नहीं है खिलाड़ी।