चाय की चुस्की
चाय की चुस्की
पतीले में गर्मा गर्म चाय बन रही थी,
इलायची और चीनी की भीनी सी खुशबू सांसों में घुल रही थी।
खामोश रास्ते पर छोटी सी एक चाय की दुकान दिखी,
मानो आगे बढ़ने के लिए किसी मुसाफिर को उम्मीद हो दिखी,
सहसा मैं रुका और आगे बड़ा,
चाय की ख्वाहिश में दुकान पर जा पहुंचा।
पतीले में गर्मा गर्म चाय बन रही थी,
इलायची और चीनी की भीनी सी खुशबू सांसों में घुल रही थी।
पहली चुस्की में मानो आत्मा तृप्त हो गई,
आज चाय तीर्थ दर्शन के समान हो गई,
अनजान शहर में ये चाय अपनी सी लगी,
मेरे इस सफर में चाय मेरा साथी बनी।
पतीले में गर्मा गर्म चाय बन रही थी,
इलायची और चीनी की भीनी सी खुशबू सांसों में घुल रही थी।
चाय ने ठंड की ठिठुरन और मन की अशांति को खत्म कर दिया,
व्याकुल इस मन को प्रेरणा से भर दिया,
अपने आसपास नित बनती बिखरती प्रकृति को मैंने देखा,
ज़रा रुक कर मैंने आज प्रकृति को करीब से देखा।
पतीले में गर्मा गर्म चाय बन रही थी,
इलायची और चीनी की भीनी सी खुशबू सांसों में घुल रही थी।
किसी की पहली मुलाकात का गवाह बनी ये चाय,
किसी के फुर्सत के पलो में सुकून बनी ये चाय,
बेगानी राहों में ये चाय आज अपनी सी लग रही है,
स्वाद में ये आज कुछ अलग ही मीठी लग रही है।