इश्क़ का जुआ
इश्क़ का जुआ


हम दोनों आमने सामने थे
किस्मत का जुआ आज़मा रहे थे
उनके तीर उनके एहसास थे
तो हमारी कमान में अल्फ़ाज़ थे
बाज़ी बराबर ही चल रही थी
कि दोनों तरफ
धड़कनें बढ़ रही थी,
जीत किसकी होगी, मालूम नहीं
मगर ये दिल, दोनों हार चुके थे
हम दोनों आमने सामने थे
वो अपने एहसास हमें सुना रहे थे
हम भी अपने अल्फ़ाज़
किसी महफ़िल में गुनगुना रहे थे
वो हमसे इज़हार कर रहे थे
और उनके वो एहसास ,
हमारी बाज़ी बेकार कर रहे थे
हमारा इकरार करना अभी बाकी था
हमारा जीतना जो अभी बाकी था
हमने नज़रें उनसे दूर कर ली
वरना
वो अब तक सब जान चुके थे
हम दोनों आमने सामने थे
किसी शायर का खूब
नज़रिया है कि
"ये इश्क़ नहीं आसान
बस इतना समझ लीजिए
कि आग का दरिया है
जिसमें डूब के जाना है"
मगर हम दोनों की नज़र में
इश्क़ तो एक मयखाना है
उस मयखाने के जाम
एक दूसरे के नाम
हम दोनों ही कर चुके थे
हम दोनों आमने सामने थे
उस मयखाने में एक शाम सजी थी
जब हमने अपनी बात रखी थी
"वो किसी शायरा की शायरी के मोहताज नहीं
वो लफ़्ज़ों में सर-ए-आम जीते हैं
उन्हें पूरा होने के लिए इश्क़ की ज़रूरत नहीं
बस हम ही वो अधूरेपन का जाम पीते हैं"
वहाँ मौजूद सब लोग , उनके साकी थे
कुछ ही जाम थे, जो चखने बाकी थे
वो मेरी ओर देखते हुए
मेरा अधूरा जाम चख रहे थे
हम दोनों आमने सामने थे
इश्क़ का जुआ आज़मा रहे थे।