कहाँ भाती है आजकल कोई खुशी
कहाँ भाती है आजकल कोई खुशी
कहाँ भाती है आजकल कोई खुशी किसी को
हर मन की दहलीज़ पर दर्द की लड़ी पड़ी है।
उठ रही है हर घर से अर्थी क्या मनाएं कोई जश्न
यहाँ सबके नैनों से अश्कों की नमी बह रही है।
भले जो जा रहा है वह नहीं कोई किसी का अपना
पर दिल में सबके संवेदनाओं की नदी बह रही है।
मनाएंगे खुशी जब ठहरेगी लबों पर हंसी
फ़िलहाल तो अवसाद की आँखों से नमी बह रही है।
ज़िंदगी में आज भले रौनक की कमी है
बदलेगा वक्त बदलेंगे हालात उम्मीद पर दुनिया कायम खड़ी है।
इंतज़ार है सुनहरी भोर का आज भले अंधेरा घना है
कभी खुशी कभी गम यही ज़िंदगी की सच्चाई बड़ी है।
गुज़ार लो ये अनमना वक्त कब तक रुकेगा
बदलना वक्त की फ़ितरत है पीछे खुशियों की बदली बौछार लिए
हंसती खड़ी है।