ख़ामोश
ख़ामोश
कुछ बे बुनियाद सी बातें हैं,
गुजरी तकलीफ में रातें हैं,
सोना तो हम कब से चाहे,
न जाने क्यूं फिर जग जाते हैं ?
सुबह, चाय की प्याली में,
अपनों की दी हुई गाली में,
आंखों में अश्क पल में आके,
न जाने क्यूं फिर रुक जाते हैं ?
हसना, मुस्काना मैं भी चाहूं,
खुद से लड़ के मैं चुप हो जाऊं,
खुशियों को खोज के लाके,
न जाने क्यूं फिर ख़ामोश जाते हैं ?