ख़ामोश दिल
ख़ामोश दिल
मेरे ख़ामोश दिल को तो जरा पहचानो की समंदर में न डुबकी लगाने चला जाये।
मेरे पंखों में तो जान भर दे ताकि मैं भी पंछी की तरह सारे समंदर का सैर लगाऊँ।
क्या मैं अपने राज को यूं ही अपने दिल में छुपाऊँ।
मेरी भी कोई चाह है मैं भी समंदर की बीचोबीच से जरा सा डुबकी लगाऊँ।
मेरे पंखों में तो जान भर दे ताकि मैं भी पंछी की तरह सारे समंदर का सैर लगाऊँ।
क्या बात है कि मैं जोरों से हँसकर अपनी पीड़ा को न सुलझाऊँ।
मेरे दिल में उठे ठेस को किसी से मरहम लगाऊँ।
बस यही एक वक्त है ताकि मैं अपने आप को सुलझाऊँ।
क्या मेरी चाह नहीं की मैं भी किसी समंदर के बीचोबीच
किसी की आंखों में आंखें डाल कर सारी उम्र बिताऊँ।
बस यही मेरी ख़ता है कि मैं भी किसी से दिल लगाऊँ।
मेरे अंदर खामोशियों का क्या राज है।
जो कि उस राज को बताने में कभी पहाड़ भी डगमगाने लगे।
उस राज को बताने में मैं कहीं राज न हो जाऊँ।
क्या करूँ मैं भी किसी से दिल लगाऊँ।
