कहाॅ॑ गई मर्यादा
कहाॅ॑ गई मर्यादा
भूल गया है आज क्यो मानस, देखो अपनी मर्यादा।
संस्कारों की जली होलिका,छाई समाज में अमर्यादा।
न अब भाईचारा दिखता, न बंधुत्व का नारा है।
न अपनापन रिश्तों में है, न ही कोई प्यारा है।
अपने में ही खोए हुए है,लगता समाज ये है मुरदा।
भूल गया है आज क्यो मानस, देखो अपनी मर्यादा।....01.
अपने ही घर में बेगाने, बन कर रहते लोग यहाॅ॑।
मान बड़ों का कहाॅ॑ अब होता,हुए अमर्यादित लोग यहाॅ॑।
सच्चाई का घोट गला अब, झूठ में सब है आमादा।
भूल गया है आज क्यो मानस, देखो अपनी मर्यादा।....02.
अब नहीं यहाॅ॑ दिलदार दिलों के, बे दिल वाले रहते हैं।
अपनों को ही लूट लूट कर, पापो से तिजोरी भरते हैं।
घूम रहे हैं लेे कर सिर अपने, अपना पाप पुलंदा।
भूल गया है आज क्यो मानस, देखो अपनी मर्यादा।....03.
आंखों में गंदगी का कीचड़,मन मैला है आज हुआ।
लाज शरम सब गई है मारी,कैसा अब संसार हुआ।
दुनिया ने अब ओढ़ लिया है, देखो झूठ लबादा।
भूल गया है आज क्यो मानस, देखो अपनी मर्यादा।....04.
कहाॅ॑ गई नारी मर्यादा, लुटती है क्यों गलियों में।
भरी हुई है दहसत क्यों,आज आॅ॑गन की कलियों में।
कुछ समाज मदहोश है मद में,कुछ देखो बना दरिंदा।
भूल गया है आज क्यो मानस, देखो अपनी मर्यादा।
