काश ऐसा होता एक शहर
काश ऐसा होता एक शहर
बहुत से हाथ उठते हैं भीड़ में
अलग-अलग मंसूबों के साथ.
जमीन के बंटवारे की तरह।
काश हो सकता सोच का भी वर्गीकरण
कि कोई किसी पर हावी न होता
अपने दायरे में सभी
अपनी खुशियों के साथ रहते।
अपना गांव,
अपने हिस्से की जमीन
यहां तक कि रिश्ते भी
अपने-अपने संभालते।
खुद का अन्न उगाते
और अपना ही पानी निकालते
फ़िर ईर्ष्या न होती
जब कोई देखने वाला नहीं तो,
दिखावा न होता
झगड़े न होते
किसी का किसी पर
न प्रभाव रहता
मन में संतुष्टि का भाव रहता।।