कुरुक्षेत्र में उतरने दो
कुरुक्षेत्र में उतरने दो
अरमानों को दहकने दो
क़दमों को जरा बहकने दो ,
मन की घटाओ से आज
मेघ मल्हार बरसने दो ,
कैसा भ्रम, कैसा ये डर
मन को यूँ ना तरसने दो
बिखरी लटों को सँवार दूँ
मुझको ये संधान करने दो,
डर के आगे ही तो जीत है
उमंगों को बाँहों में भरने दो ,
मैं बनूँ तेरा सारथी अब
खुद को कुरुक्षेत्र में उतरने दो।

