बरखा
बरखा
थका माँदा था गर्म सूरज
जलकर अपनी ही तपिश में
तो लेकर मेघों का सहारा
घटाओ की ओट में चुपके से
बादलों को लिहाफ बनाकर
वो कुछ वक़्त को सो गया
बरखा रानी प्रेम बरसाने लगीं
बरसात की बूँदें सिहराने लगीं
सोंधी सी मिट्टी की उठती महक
एक नई दुनिया दिखाने लगीं
उस पल दुनिया का मोह भूलकर
मैं खुद से प्रीत निभाने लगी।
