"जुदाई के लम्हे"
"जुदाई के लम्हे"
देखो ये कैसी सुबह आयी है,
वो मुझसे अपना सब कुछ खत्म करने आयी है..
होठों पर हसी और आँखों का फैला हुआ काजल,
लगता है पूरी रात रोकर आयी है..
और उसके इस फैसले को मैं कैसे ना मानता ए दोस्त,
मेरा नाम मिटाने को उसने अपनी कलाई जलाई है..
वो अंगूठी भी रूठ गई जो पहनाई थी मैंने उसे कभी,
गुजारिश है निकल जा बाहर-देख कल उसकी सगाई है..
हुई रुखसत तो रो दिया फूूट फूट कर मैं भी,
किसी ने पूछा तो कह दिया-अब रोऊँ भी ना ये उसकी विदाई है..
और एक कागज़ कलम रख आया था मैं उसके तोहफे मे,
मैंने जिंदगी में बस इतनी ही दौलत कमाई है..!