जुबान का जहर
जुबान का जहर
लोगों का पता नहीं
मैं तो घुट घुट कर जीती हूं
दिन रात ताने सुन सुन कर
लोगों की जुबान का जहर पीतीं हूं
भगवान ने तुम्हें औरत बनाया है
इसलिए तुम्हें तो घर चलाना चाहिए
कितना भी पढ़ाई कर सर उठा लो
लेकिन ससुराल में सर झुकाना चाहिए
जिस दिन बीमार पड़ जाती हूं
घर के सारे काम रुक जाते हैं
बाकी दिनों की खबर नहीं इनको
तुम करती क्या हो यही सुनाते हैं
किचन के सामान की फिक्र नहीं
फिर कहेंगे खाना बनाने नहीं आता
मेहमान के आने पर लिस्ट बनाते हैं
फिर कहेंगे ये स्वाद रोज क्यों नहीं आता
कभी सही जवाब दे दो तो कहते हैं
कि देखो ये हमसे जबान लड़ाती है
बस ऐसी बहुत छोटी छोटी बातें हैं
जो मेरे दिल को चुभ जाती हैं
जिंदगी का जहर पी लेती हूं पर
जुबान का जहर पिया नहीं जाता
घर बनाने में खुद को कुर्बान कर दिया
पर अब त्याग के बाद जिया नहीं जाता