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Renu Sahu

Tragedy

4.5  

Renu Sahu

Tragedy

जनक... हर युग मे,

जनक... हर युग मे,

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क्यूँ हर युग मे जनक ही रोए 

सूता का पालक क्यू सूता को खोए

कभी हिमालय कभी जनक जी, 

कभी द्रुपद के नैन है सूखे

पाले जिसे प्रेम हाथ से

वो क्यू वन वन दुख मे भटके


गाओ गान महादेव की

करो पूजा मर्यादापुरुषोत्तम की

या पाण्डव की विजय पताका लहराओ

या सुनाओ दोहे सबको गीता की


पर कोई तो पिता का दर्द दिखाए

उस अथाह हृदय की व्यथा बताए

हा गर्व करते है ये पुत्रियों पे

पर कोई एक तो सुख के आंसू की वजह बताए


कहो ना कहो कि चुप ही रहो 

आज भी जनक ही रोता है 

दशरथ की पुत्र भक्ति सब गाते 

मिथिला का त्याग ये जग भूलता है 


कर्तव्य सुख की कहासुनी है 

या भावनाओ की सरिता 

जब दिखे जनक भी मुस्काता 

तब शायद सार्थक होगी मेरी कविता।


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