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Kanchan Prabha

Inspirational

4.8  

Kanchan Prabha

Inspirational

जिन्दगी कितनी टेढ़ी है

जिन्दगी कितनी टेढ़ी है

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सुलगती आँच पर धधकती अधन की बूँदें

जब पड़ती थी माँ के उन हथेलियों पर 

तब सोचा न था जिन्दगी इतनी टेढ़ी है


गर्म तेल में सब्जी की तीखी छौंक से

जब होती थी माँ को छींक और खांसी

तब सोचा न था जी जिन्दगी इतनी टेढ़ी है


तपती धूप में सब्जी से भरी भारी थैले

और हांफती टूटती साँसे पिता जी की

तब सोचा न था जिन्दगी इतनी टेढ़ी है


मेरे लिए झालार वाली लाल फ्राक आती

और दीवाली पर वो पहनते वही पुराने कुर्ते

तब सोचा न था जिन्दगी इतनी टेढ़ी है


बड़ी दीदी की शादी में जब बेची गई थी

माँ के बाबुल की वो अनमोल निशानी

तब सोचा ना था जिन्दगी इतनी टेढ़ी है


मेले में बन्दूक के लिए भाई की जिद पर 

लुटाये गये थे जब माँ के दवाइयों के पैसे

तब सोचा न था जिन्दगी इतनी टेढ़ी है



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