राज से बैराग
राज से बैराग
Prompt-30
जीवन की राह में बढ़ते बढ़ते
ऊंची पहाड़ पर चढ़ते चढ़ते
अभिलाषा का अंत हुआ ।
अब मेरा मन भी संत हुआ ।
कितने सूर्योदय देख लिए
कितने चंद्रोदय देख लिए
अब ज्ञान भी मेरा ग्रंथ हुआ ।
अब मेरा मन भी संत हुआ।
एक गरीब के दर्द भी देखें
ठंडी रातें सर्द भी देखें
नेताओं का अब तंत्र हुआ ।
अब मेरा मन भी संत हुआ ।
कितनों के मन को पढ़ लिए
मैंने तो पर्वत चढ़ लिए
कोई तो जग में परतंत्र हुआ ।
अब मेरा मन भी संत हुआ ।
होता है मृत्यु परम सत्य
जीवन होता धूमिल असत्य
यही तो जीवन मंत्र हुआ
अब मेरा मन भी संत हुआ।