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Kanchan Prabha

Abstract Classics Inspirational

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Kanchan Prabha

Abstract Classics Inspirational

राज से बैराग

राज से बैराग

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जीवन की राह में बढ़ते बढ़ते 

ऊंची पहाड़ पर चढ़ते चढ़ते अभिलाषा का अंत हुआ 


अब मेरा मन भी संत हुआ कितने सूर्योदय देख लिए 

 कितने चंद्रोदय देख लिए अब ज्ञान भी मेरा ग्रंथ हुआ 


 अब मेरा मन भी संत हुआ एक गरीब के दर्द भी देखें 

ठंडी रातें सर्द भी देखें नेताओं का अब तंत्र हुआ 


अब मेरा मन भी संत हुआ कितनों के मन को पढ़ लिए 

मैंने तो पर्वत चढ़ लिए कोई तो जग में परतंत्र हुआ 


 अब मेरा मन भी संत हुआ होता है मृत्यु परम सत्य 

जीवन होता धूमिल असत्य यही तो जीवन मंत्र हुआ 

अब मेरा मन भी संत हुआ।


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