STORYMIRROR

Kanchan Prabha

Abstract Classics Inspirational

4  

Kanchan Prabha

Abstract Classics Inspirational

राज से बैराग

राज से बैराग

1 min
299

जीवन की राह में बढ़ते बढ़ते 

ऊंची पहाड़ पर चढ़ते चढ़ते अभिलाषा का अंत हुआ 


अब मेरा मन भी संत हुआ कितने सूर्योदय देख लिए 

 कितने चंद्रोदय देख लिए अब ज्ञान भी मेरा ग्रंथ हुआ 


 अब मेरा मन भी संत हुआ एक गरीब के दर्द भी देखें 

ठंडी रातें सर्द भी देखें नेताओं का अब तंत्र हुआ 


अब मेरा मन भी संत हुआ कितनों के मन को पढ़ लिए 

मैंने तो पर्वत चढ़ लिए कोई तो जग में परतंत्र हुआ 


 अब मेरा मन भी संत हुआ होता है मृत्यु परम सत्य 

जीवन होता धूमिल असत्य यही तो जीवन मंत्र हुआ 

अब मेरा मन भी संत हुआ।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract