होली समझ मिरी मन गई
होली समझ मिरी मन गई
डूब जाऊँ जिस पल तिरे रंग में
होली समझ मिरी मन गई
दुनिया से खेल कर रंग क्या मिला
जो पल में उतर गई
डूब जाऊँ जिस पल तिरे रंग में
होली समझ मिरी मन गई
जब से दिया जनम मुझे तूने जमीन पर
इक बार भी आया नहीं न सुधी ली पलट कर
ऐसा क्या हुआ जुर्म आ आ के बता जा
दुनिया से खेल कर रंग क्या मिला
जो पल में उतर गई
डूब जाऊँ जिस पल तिरे रंग में
होली समझ मिरी मन गई
आशा लिए मिलन की मैं जी रहा हूँ कान्हा
चरणों की धूल मस्तक पे लगा ने को हूँ मैं आतुर
बस एक ही सवाल लिए सहरा में हूँ मैं भटका
किस बात पे है रूठा किस है तू अटका
डूब जाऊँ जिस पल तिरे रंग में
होली समझ मिरी मन गई,
आजा गले से लगा के अंदर मुझे समा ले
वैसे तो हूँ मैं मैं तुझ सा तू भी मुझे अपना बना ले
भोला था भोला ही रहने दे मुझको मालिक
सीखा जो दुनियादारी तो जिंदगी बेकार हो गई
डूब जाऊँ जिस पल तिरे रंग में
होली समझ मिरी मन गई ........