ज़िन्दगी का फैसला जो भी होगा
ज़िन्दगी का फैसला जो भी होगा
जब ये ज़िन्दगी ही साथ देने को नहीं है तैयार,
तो मेरी इन बेवजह कोशिशों से क्या ही होगा,
जब भी उठने की कोशिश की गिराया हर बार,
अब तो मंजूर ज़िंदगी का फैसला जो भी होगा,
बिखर गए ख़्वाब फिर भी की नहीं शिकायत,
बची थी जो खुशियांँ वो भी उसे रास ना आई,
मुझ संग ज़िदगी की जाने कैसी यह अदावत,
कि मुझसे दूर होती जा रही है मेरी ही परछाई,
कुछ ज़्यादा तो मैंने नहीं मांग लिया था तुझसे,
सुकून के कुछ लम्हों की तो की बस ख़्वाहिश,
पर तूने तो सुकून की वज़ह ही छीन ली मुझसे,
इतने पर भी ख़त्म कहांँ हुई है तेरी आजमाइश,
सुना दे ऐ ज़िन्दगी तूने जो भी फैसला लिया है,
तेरे हर फैसले को हर बार स्वीकार ही किया है।