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Rekha gupta

Abstract

4  

Rekha gupta

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आवागमन

आवागमन

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380


जिन्दगी का चलन आवागमन, 

फिर क्यों पालते इतने भरम, 

जी लो हर लम्हा क्षणभंगुर जीवन का,

सुख हो, या फिर हो दुख का आगमन। 


न रहो किसी लम्हे से अंजान,

न करो किसी लम्हे का इंतजार, 

जो भी है बस ये ही इक लम्हा है,

जी लो हर लम्हा आखिरी पल मान।


छूटते हैं साथी सभी एक एक कर,

याद करते हैं हम सबको रह रहकर,

महसूस होती आभा उनकी चहुं ओर, 

तड़प जाता है मन याद उनको कर ।


मिलना बिछुड़ना आना जाना सत्य है,

सृष्टि चक्र का ये खेल अटल है,

बारी आने पर सबको एक दिन जाना है,

आवागमन का ये मार्ग अटूट सत्य है।


मन में यादें दावानल सी सुलगती हैं,

नयनों से अश्रु झड़ी ढुलकती है ,

बिछोह हो जब किसी अपने प्रिय का,

दर्द विरह वेदना नहीं संभलती है ।


जिन्दगी का बस यही दस्तूर बनाओ,

प्रेम से जीओ और प्रेम ही फैलाओ, 

जाना है सबको अपने अपने रास्ते,

दिल को अपने बस मजबूत बनाओ। 



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