मेघराज
मेघराज


बादलों की गर्जना सुनने को
सभी प्राणी जीव जंतु हैं बेचैन
कहां छुपे बैठे हो तुम मेघराज
लेकर हम सबका सुख चैन ।
खेत सूखे, सूखी कुईयां और नदियां
कहीं न टपका पानी का एक कतरा
धरती का आंचल है सूखा
माटी सूख कर बनी पपड़िया।
सिसक रही है सूखी धरा
तपते सूरज के ताप से
पशु पक्षी सभी बेहाल
तन मन व्याकुल प्यास से।
सूखे खेत खलिहानों में
फसल मर रही बरखा बिन
सावन भादो बीत रहा
धधकता सूरज आसमान में।
सूनी आंखों से तकते हैं आसमान
हमारे अन्नदाता दुखी किसान
नम आंखों से करते है प्रार्थना
अब तो प्रसन्न हो इन्द्र भगवान।