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Rekha gupta

Tragedy Inspirational

4.0  

Rekha gupta

Tragedy Inspirational

नारी शक्ति

नारी शक्ति

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कभी अपना वजूद न जान पाई,

कभी बेड़ियां तोड़ न पाई, 

चक्रव्यूह कभी न भेद पाई,

हक की पैरवी कभी न कर पाई,

बस तुम में ही समाहित होती रही। 


तन्हा तन्हा जीती मरती रही ,

सबकी खुशियों का सोचती रही, 

मन के दर्द, जख्म रिसते रहे,

अधरों पर मुस्कान रखती रही। 


अब और ये सब नहीं सहना है, 

अपनी लड़ाई खुद ही लड़ना है, 

इस चक्रव्यूह को भेदना है, 

सम्मान का ताना बाना बुनना है। 

 

अंदर की ताकत को पहचानना है, 

अपनी ऊर्जा में शक्ति संचार करना है, 

पुरानी पगडंडी पर नई राह बनाना है, 

दूसरे की नहीं,खुद

की जागीर बनना है। 


मजबूत इरादों के साथ बेझिझक, 

अपनी रोती सिसकती आत्मा को, 

अपने टूटते वजूद के बिखराव को,

अपने मनोभावों को पुनर्जन्म देना है। 


ओढकर मौन की चादर नहीं बैठना है, 

दहलीज की खामोश सांकल नहीं बनना है, 

संघर्षों का अपनी शक्ति से मर्दन करना है, 

विरोध में भी हौसलों को विराम नहीं देना है 

 

नारी मन मेदिनी में जब बाढ आए,

कोई वेग, प्रवाह उसे रोक न पाए,

नारी शक्ति का प्रत्यंचा जब चढ़ जाए,

खामोशी शब्दों से गुंजायमान हो जाए,

अस्तित्व नारी का नए आयाम पा जाए। 


      


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