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Rekha gupta

Abstract

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Rekha gupta

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मेरी बेटी मेरी खुशी

मेरी बेटी मेरी खुशी

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उस लम्हे का वो एहसास, 

जब पाई थी मैंने ये खबर,

मेरे शरीर में तुम्हारा बीज,

अंकुरित हो चुका है,


मेरे जीवन की बगिया में, 

मानो बसंत की बहार आई थी,

रंग बिरंगे ढेरो खुशियों के फूल,

जीवन को मेरे महका रहे थे ।


तुम्हारा मेरे जीवन में आना मानो,

मेरे जीवन को पूर्ण॔ता मिल जाना,

वो अनोखा अदभुत एहसास था,

जब मैंने तुमको हाथो से छुआ था,


अपने आंचल में समेटा था,

मासूम सी भोली तुम्हारी सूरत में,

मेरे असंख्य सपनों का खजाना था,

तुम्हारी मासूम सी हंसी पर,

अपना तन मन धन सब वारा था।


तुम्हारा छोटी छोटी आखें खोलना बंद करना,

मानो तारो का बादलो में छिपना और दिखना,

तुम्हारे साथ साथ मैंने भी एक बार फिर,

अपना अनमोल बचपन जिया था ।


एक बच्चे के साथ साथ मां एक बार,

फिर अपने बचपन को जीती है,

उसके डगमग कदमो को देख कर,

जिन्दगी के सफर में गिरना चलना सीखती है।


बच्चे के हर पल को अनमोल लम्हा बनाकर 

दामन में अपने समेट कर रखती है,

बच्चे हर पल हर लम्हे को,

यादों की माला में पिरोती जाती है।


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