बहुत है
बहुत है
दुश्मनों को जो पसंद बहुत है
अपने यहाँ जयचन्द बहुत है।
जो है अंधा, बहरा और गूँगा
आवाज़ उसकी बुलंद बहुत है।
जिसने सीखा है सच छिपाना
समझ लो के हुनरमंद बहुत है।
हर मौके का फायदा है उठाता
यानी वो ज़रूरत मंद बहुत है।
माज़ी, हाल, मुस्तकबिल खंगाले
देखिए आज करमचंद बहुत है।
छोड़ दिया अपने हाल पर हमें
मगर वैसे वो फिक्रमंद बहुत है।