ज़िंदगी
ज़िंदगी
जिंदगी यूँ ही जज्बात से नहीं चलती
फक़त उम्दे खयालात से नहीं चलती।
रुखसत होता हूँ रोज घर से रोज़ी को
गृहस्थी चंदे या खैरात से नहीं चलती।
मुकाबला भी ज़रूरी है जरूरतों से
हसीं ख्वाबो एह्ससात से नहीं चलती।
रज़ामंदी रूह की लाज़मी है मुहब्बत में
बस जिस्मों के मुलाकात से नहीं चलती।
कब्र की अहमियत भी समझो गाफिलों
दुनिया सिर्फ़ आबे हयात से नहीं चलती।
