कविता पेट नहीं भरती
कविता पेट नहीं भरती
1 min
181
कविता
पेट नहीं भरती है
मगर हाँ, भूख ज़रूर
बढ़ा देती है लिखने वालों का।
और ज्यादा लिखने के लिए
और ज्यादा छपने के लिए
और ज्यादा पढ़े जाने के लिए ।
कवि, कथाकार, लेखक, समीक्षक
और जितने भी होते हैं रचनाकार ।
सब चाहतें हैं अपने-अपने तरीके से
अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को
अपनी रचनाओं के माध्यम से
लोगों तक पहुँचाने के लिए।
विषयवस्तु परिस्थिति और दौर
के मुताबिक लेखन स्वरूप भी
बदलता रहता है,
अगर
नहीं बदलता है
तो वो है इनकी
"मालिहालत "
(कुछेक को छोड़ कर)
