ओढ़ ली है कफ़न
ओढ़ ली है कफ़न
ओढ़ ली है कफन अब मैंने मुस्कुराने की
बन गया हूँ खिलौना बस दिल बहलाने की।
जिस्म बना है मक़बरा मेरे ही अरमानो का
और कब्र बन गया है दिल दर्द दफनाने की।
इस कदर महफूज़ रक्खा है गमों ने मुझको
ज़ूर्रत नही हुई खुशियों को पास आने की ।
कैद हूँ मै आज अपने यादों के कैदखाने में
सजा मिली है मुझे उनको भूल जाने की ।
कैसें करुँ मैं हक़ अदा, ए मौत, बता तेरा
मुझे तो इजाज़त भी नहीं है मर जाने की।