थोड़ा हंँसना आया थोड़ा रोना भी
थोड़ा हंँसना आया थोड़ा रोना भी
थोड़ा हंँसना आया, थोड़ा रोना भी,
कुछ पाया मैंने कुछ पड़ा खोना भी,
अपनों को साथ-साथ लेकर चलने में,
कभी मुड़ना पड़ा तो कभी रुकना भी,
ज़िन्दगी के सवालों ज़वाबों के कटघरे में,
कभी समझौता तो कभी पड़ा झुकना भी,
सफ़र-ए-ज़िन्दगी में जब-जब मोड़ आया,
कोई अपना बना तो कोई बना बेगाना भी,
थोड़ी आस मिली और थोड़ी उम्मीद टूटी,
कभी जोड़ा हमने कभी पड़ा बिखरना भी,
बिखरते और टूटते रिश्तों को बचाने के लिए,
कभी सच छुपाया कभी पड़ा झूठ बोलना भी,
कुछ खोया लौट आया कुछ आकर चला गया,
थोड़ी हकीकत ज़िंदगी और थोड़ा फ़साना भी,
सुख के झूलों और दुख के हिचकोलों के बीच,
ज़िंदगी का रास आया बहुत कुछ सिखाना भी।
