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मिली साहा

Abstract

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मिली साहा

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आरुषि (सूरज की पहली किरण)

आरुषि (सूरज की पहली किरण)

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आरुषि जब धरा को छूती

सुप्त चेतना के पट खोलती

मिटाकर गहन अंधकार मन का

एक नई उम्मीद जगाती।।


रक्त अंबर रूप मोहक देखकर

प्रकृति भी स्वागत करे मुस्कुराकर

स्वर्ण लताओं सी बिखरी आरुषि

नव ऊर्जा संचार करे मन में समाकर।।


नवजीवन खिले प्रकृति के अधरों पर

दुल्हन सी लगे धरा आरुषि की चादर ओढ़कर

दिनचर्या की सुनहरी शुरुआत का बजे बिगुल

आरुषि के अद्भुत रूप से आनंदित होकर।।


मंद मंद बहती पवन पक्षियों का मधुर गान

नवप्राण आग़ाज़ से रोशन हुआ जहान

जल स्रोत पर झिलमिल करती आरुषि का

कोई जन ना ऐसा जो ना करे गुणगान।।


आरुषि से नव कांति लेकर

बढ़ते चल हे! प्राणी जीवन पथ पर

हारकर ना निराश हो, तू भी उदित होगा

रवि उदित होता जैसे निशा को हराकर।।


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