जीवनसाथी
जीवनसाथी
अकेला भटकता मन
एकाकी था, यह जीवन।
रोशनी से न सरोकार था,
अंधेरे से तब, मुझे भी प्यार था।
पतझड़ था, जीवन-कानन
निर्जन-नीरस-बेजान था।
अकेला भटकता मन
नासमझ-नादान था।
फिर, एक हाथ बढ़ा
एक दिन, साथ निभाने को,
जीवन के पतझड़ में आया, सावन
जीवन-कानन सजाने को,
शुष्क मन की जमीं
अब, आनंद रस में लहराती है।
जीवन के बागों में, अक्सर
फूलों की चादर खिल आती है।
एक साथी, एक हाथ
हर सुख-दुख में देता है, साथ,
जीवन का सकल भार
आधा-आधा कर लेता है, हर बार,
वह मेरा जीवनसाथी
है, मेरे जीवन का अर्द्धांग,
जीवन मेरा तब से, जश्न भरा
जब से आया, वह मेरे संग।