जीवन - मृत्यु बस एक पहेली
जीवन - मृत्यु बस एक पहेली
बीते कुछ दिन बड़े कष्टदायक थे,
अपनी प्यारी नानीजी से अकस्मात् ही हम दूर हो गए ।
उनका जाना किसी सदमे से कम ना था,
लगाव का आलम इतना था, कि हर कोई डूबा गम में था।
सोचने लगा फिर दिल -ए - नादान कि मरने के बाद आखिर कहाँ जाता है इंसान,
दूर हों जाता अपनों से या पुनः जन्म ले के अवतरित हो जाता धरती पर, यह गुत्थी सुलझाना ना आसान।
क्या वे यहीँ हैं हमारे संग किसी अन्य रूप में, ये प्रश्न उठता बरम्बार,
या फिर बस आत्मा शेष जीवंत रह जाती, लेने कोई अन्य अवतार।
ऐसी अनगिनत शंका -आशंकाओं से घिरा रहता निरंतर मन,
बन कर एक पहेली जो करतीं अनवरत ह्रदय में स्पंदन।
जीवन-मृत्यु एक पहेली-माफिक है ,
जितना सुलझाओ उतना धनस्ते जाओ,
दलदल की भाँती है मोहमाया से लिप्त संसार,
जितना निकले बाहर इससे, उतना ही इसमें उलझते जाओ ।