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Kunda Shamkuwar

Inspirational Abstract Others Drama

4.8  

Kunda Shamkuwar

Inspirational Abstract Others Drama

कैक्टस के झुरमुुुट में....

कैक्टस के झुरमुुुट में....

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मैंने एक अकेली स्त्री को देखा है.... चलते हुए...

नहीं !नहीं !!

मीलों दूर कदमताल करते हुए.....

तपती रेत पर कैक्टस के झुरमुुुट में.....

कभी उसे देखती हूँ चलते हुए दरख्तों के बीच से.....

शायद हरियाली की आस में....

लेकिन पाती हूँ मैं उसे धँसते हुए किसी दलदल में....


लेकिन वह एक स्त्री है.....

इस जहाँ में निपट अकेली स्त्री....

जिसे नियति ने सरवाइवल इंस्टिंक्ट दिए है.....

इस जालिम दुनिया में जिंदा रहने के लिए....

वह उस दलदल से बाहर निकल आती है....

थके मन से....

टूटे तन में.....

वह फिर मोहरों में उलझ जाती है...

घर परिवार के....

आस पड़ोस के....

ठीक उन शतरंज के काले सफ़ेद मोहरों की तरह....

ऊँट, घोड़े और हाथी को साथ लेकर वह लड़ती जाती है.....

सारे मोहरों के साथ....

अब वह नही उलझती है भरवा भिंडी और करेलों में.....

वह अपनी किस्मत की वजीर बन चेक मेट करती जाती है.....

अपने सारे मसलों का....

और अपनी जिजीविषा से निकल आती है बाहर....

और फिर चलते ही जाती है उन्ही दरख्तों के बीच से....

उसी हरियाली की ओर .....!



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