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कवि धरम सिंह मालवीय

Drama

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कवि धरम सिंह मालवीय

Drama

बाद मुद्दत के पाया था मैंने जिसे वो सनम मेरा जाने कहाँ खो गया

बाद मुद्दत के पाया था मैंने जिसे वो सनम मेरा जाने कहाँ खो गया

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बाद मुद्दत के पाया था मैंने जिसे

वो सनम मेरा जाने कहाँ खो गया

मैंने की थी मोहब्बत तुमसे ही बस

मेरा दुश्मन तो सारा जहाँ हो गया 


मन था मेरा मरू स्थल की तरह

आइये इसमें बस्ती बसा दीजिए 

बाग फूलों के तुम लगाकर यहाँ

पेड़ काँटों के यहाँ से हटा दीजिये

जिस जगह तुमने रखा था कदम

बाग़ फूलों भरा अब वहाँ हो गया


बाद मुद्दत के पाया था मैंने जिसे

वो सनम मेरा जाने कहाँ खो गया


आस थी मिलने की तुमसे ही बस

जाने क्यों मैं जग से बेगाना हुआ

दोस्ती बस तुम्ही से तो की थी मैंने 

अब दुश्मन मेरा क्यों जमाना हुआ

हालत देखकर खुद की लगा है ये

प्यार करना तो जैसे सज़ा हो गया 


बाद मुद्दत के पाया था मैंने जिसे

वो सनम मेरा जाने कहा खो गया


तारों से भरा दिख रहा हैं आसमां 

टूट कर गिरते तारे जमी पर कई

लाख तारे भरे आसमां के निकट

बिछड़े तारे लगती नहीं पर कमी

होता हैं बस बिछड़ने का दुख उसे

दिल लगाया था वो जुदा हो गया


बाद मुद्दत के पाया था मैंने जिसे

वो सनम मेरा जाने कहा खो गया


प्यार में दर्द मिलना लाज़िम हैं जब

सोचता हूँ कि मैं क्यों दीवाना हुआ

प्यार के दर्द में गीत हमने लिखा 

वही गीत क्यों अब तराना हुआ

एक पल साथ रहकर कहते थे वो

प्यार का हक़ ये तो अदा हो गया


बाद मुद्दत के पाया था मैंने जिसे

वो सनम मेरा जाने कहाँ खो गया



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