जीने पर रोक
जीने पर रोक
हां भूल गई थी मै एक लड़की हूं
अपनी मर्ज़ी से जीना मेरी हद में नहीं
चूला चौका घर की साफसफाई
मेरी जगह रसोईघर में है सरहद पर नहीं
लोग कहते हैं में इज्जत हूं घर की
तो घर की इज्ज़त विराट होना क्यों उन्हें मंज़ूर नहीं
हां भूल गई थी में एक लड़की हूं
बड़ी खुश थी मै जब स्कूल में पहला कदम रखा
बड़े शौक से को पन्ने पर अपना नाम लिखा
बचपने में भूल गई उगता सूरज भी ढल जाता है
पराए घर जाके अपना नाम भी बदल जाता है
लोग कहते हैं मैं घर का मान हूं
तो घर के मान की अपनी पहचान क्यू उन्हें मंज़ूर नहीं
हा भूल गई थी मैं एक लड़की हूं
पकड़ रही थी कलियों पर बैठी एक तितली अलबेली सी
मा की डांट खाई यह सुनने पर घर से बाहर क्यों निकली जब अकेली थी
दुनिया का रिवाज यह अजब निराला है
चेहरों पर मुस्कान लाने वाली की मुस्कान पर लगा देते ताला हैं
लोग कहते हैं मैं लक्ष्मी है घर की
तो घर की लक्ष्मी का खुलकर खिलखिलाकर हड़ना क्यों उन्हें मंज़ूर नहीं
हा भूल गई थी मै एक लड़की हूं
चुप करो ज़ोर से तो मत तुम लड़की हो
घर की चार दिवारी से बाहर आवाज़ ना जाए चाहे दरवाज़ा हो या खिड़की हो
पति की मार मा बाप की डांट ऊंची आवाज़ पर
क्यों मुंह बंद करवा दिया जाता है उन चार लोगो के कहने पर
लोग कहते हैं तुम दुर्गा की छवि हो
ओह तो दूसरी को छोड़ो खुद के लिए आवाज़ उठाना क्यों उन्हें मंज़ूर नहीं
हा भूल गई थी मै एक लड़की हूं।।
