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KAMESH YADAV

Classics Fantasy

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KAMESH YADAV

Classics Fantasy

इतलाह कर रहे हैं

इतलाह कर रहे हैं

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सुनो..!

पहली दफ्फा जब तुमको देखा था ना 

लगता था तुम बहुत मासूम हो, 

और इसी मासूमियत ने ही  

हमे तुम्हारे करीब बांधे भी रखा हुआ था... 


पर अब जब ये पता चला है कि 

तुम मासूम तो हो नही 

शरारते तो तुम्हारी रूह में बस्ती है 

फिर ये सच बताये बिना 

हम रह भी तो नही सकते  

जिन हाठों पर एक हल्की सी 


मुस्कान को दबाये हुये 

छुपा लेती हो न तुम 

असल में उसके पीछे 

तुम्हारी एक शैतानी वाली हंसी भी 

छुपा के रख लेती हो 


तुमे ये बात मुझसे सुने को मिले 

ये कोई नयी बात नहीं है 

फिर भी हम तुम्हें इतलाह कर रहे हैं

तुम तो इससे पहले से ही वाकिफ हो ना।


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