तुम्हारी आँखे
तुम्हारी आँखे
कुछ कहना है आज तुम से
तुम्हारी आँखें
तुम्हारे होंठों से ज्यादा
कुछ बातें
खामोशियों से कह जाया करती है
शायद इस ही लिए मैं आज भी
तुम से जब भी कभी मिलता हूँ तो
तुम्हारी आँखों को पहले पढ़ लिया करता हूँ
क्यूँकी तुम मुझसे बात करते हुए
होंठों पर कुछ एहसासों के लफ़्ज़ों को रखती तो हो
लेकिन तुम, तब भी उन बातों को
यूँ ही अधूरा कह के छोड़ दिया करती हो
“क्या इन आँखों कि कशमकश”
होंठों से ज्यादा है
या फिर तुम
कोई बात को कहने के लिए
होंठों पर आये जज्बातों को
इन आँखों से कह दिया करती हो ..!!

