इसलिए अब तलक भी पुकारा नहीं
इसलिए अब तलक भी पुकारा नहीं
जानता हूँ की वो अब हमारा नहीं
इसलिए अब तलक भी पुकारा नहीं
आज उनका सहारा बने कौन अब
वक्त पर जो किसी का सहारा नहीं
प्यार से साथ मेरे जो जीना सका।
जान उसपर लुटाना गवारा नहीं
आज सूना पड़ा मन का ये आसमां
आसमां मैं कही अब सितारा नहीं
आज फैले जहाँ मैं नजारे कई
बस हमारी नजर को नजारा नहीं
लग गई कश्तियाँ भी किनारे से सब
बस हमीं को मिला अब किनारा नहीं
वो सुखनवर गजल का बना ही नहीं
सेर कहकर गजल को सबारा नहीं
प्यार से जीत ले जो जहाँ आज वो
क्या जमी पर उसे अब उतारा नहीं
प्यार उसको मिला हैं जहाँ में धर्म
यार जिसने जहां को बिचारा नहीं