इंटरनेट पर मौहब्बत
इंटरनेट पर मौहब्बत
इंटरनेट पर मौहब्बतलघुकथा द्वापर की राधा जिसके संजोग में श्यामसुंदर लिखा था और इक्कीसवीं सदी की पच्चीस वर्षीय तलाकशुदा, तीन वर्षीय बेटे श्याम की माँ राधा सुसराल, समाज की उपेक्षा, तानों की मार और दुखों के पहाड़, गम के कांटे लिए नासिक में अपने माँ - पिता की छत्र छाया में आर्थिक कष्ट झेलते हुए बैंक में नौकरी कर जीवन यापन करने लगी और उम्र के पैत्तीसवें पड़ाव पर आ गई थी . एकमात्र जीने का सहारा श्याम दसवीं कक्षा में आ गया था। बेटे और नौकरी की जिम्मेदारियों से चक्की के दो पाटों के बीच पीसने लगी।
मनोरंजन के नाम पर फेस बुक पर चैट कर और वैवाहिक डॉट कॉम पर अपने लिए योग्य लड़कों की प्रोफाइल देख लेती थी,तभी उसकी नजर कनाडा के चालीस वर्षीय निःसंतान तलाकशुदा व्यापारी कनेडी के बॉयोडेटा पर पड़ी। उससे चैट कर दुःख - सुख बाँटे, दिल की धडक़नों में सिमटी रंगों की फुहार जैसे गालों पर होली का गुलाल लगाते हुए लालम …… लाल ....... सी महसूस कर रहीं थी। दिलों की दूरियाँ नजदीकियों में बदल गयी।बैंक से छुट्टी होने के बाद हर दिन राधा मोबाइल पर श्यामसुन्दर से बात करते हुए समय का पता ही न चलता था। प्यार के इन संबंधों में दोनों में औपचारिक्ता और झिझक की दीवारें ढह गयी थीं।
एक दूजे के लिए वे आप से तुम और मैं से हम हो गए थे और इंटरनेट पर मौहब्बत ने शीघ्र ही कनेडी को नासिक में आने के लिए राधा के साथ शादी के बंधन में बंधने के लिए मजबूर किया।सामाजिक अवेहलना, अकेलापन दूर करने के लिए और सुख - सुकून, सामाजिकता की जिंदगी जीने के लिए माता- पिता की रजामंदी आशीषों के साथ श्याम को बेटा मान के कनेडी,राधा ने नासिक कोर्ट में शादी कर ली। राधा ने कनेडी को प्यार का नाम श्यामसुंदर रख दिया। प्यार के सतरंगी रंग दिलों की धड़कनों को अपनेपन के रंग में रंग रहे थे और दाम्पत्य जीवन में प्रेम की मिठास को घोल रहे थे।