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Zuhair abbas

Tragedy

4.4  

Zuhair abbas

Tragedy

इंतज़ार

इंतज़ार

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अब ज़रा सुकू हुआ थी की

ना जाने किसने उसे खबर दी 

वो ख़्वाब में आये और

मुझे फिर से बेचैन कर गए।


होकर जुदा भी वो हमसे कब दूर हुए थे

हर शब दुआ में आए और बेचैन कर गए।


मिट सी गईं है ख्वाहिशें जाने से उनके मेरी

ना लौट कर जो वो आए बेचैन कर गए ।



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