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Zuhair abbas

Abstract

4.5  

Zuhair abbas

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ज़िन्दगी रुकती नहीं

ज़िन्दगी रुकती नहीं

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अब इतना भी क्या अफसोस तेरे चले जाने का

माना तकलीफ में हैं ,सांसें ठहरी सी हैं

मगर इस क़दर बेरुखी पर तेरी खुदको खत्म तो नहीं कर सकते...


तेरे ना निभाए जाने वाले वादों ने बेशक तोड़ सा दिया है

मगर दर्द में रहकर भी क्या मस्कुरा नहीं सकते।


तेरे बिना जीना ज़रा मुश्किल तो होगा

लकिन तेरी यादों के अंधेरों मे घुटकर मर तो नहीं सकते ।



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