STORYMIRROR

Zuhair abbas

Romance

3  

Zuhair abbas

Romance

इश्क इबादत

इश्क इबादत

1 min
300

हमें रश्क है , मोहब्बत है, जरूरत भी बन गई है

उसने राब्ता इस क़दर हुआ है सासों को उनकी तलब सी है।


मसरूफियत के आलम में , बेखयाली में खयाल उनके हैं,अजब केफियात हैं

महफिलों में तनहा हैं तन्हाइयों में उनकी यादों की महफिलें सी है।


क़रार कब रातों को है ,सुबह भी बेचैनियों में होती है खुवाहिशें

बस उन्हें देखने की मुन्तजिर सी हैं।


ला हासिल पर भी कब दिल को तसल्ली है आरज़ू उसका होने की इ हर पल एक बैचैनी है।


फकत दिल को करार उससे मुलाकात के तस्व्वुर में है,

ये ज़िन्दगी अब उसके इंतजार में रुकी सी है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance