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Zuhair abbas

Tragedy

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Zuhair abbas

Tragedy

बेवफा मोहब्बत

बेवफा मोहब्बत

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 मेरे लफ्जों की हक़ीक़त जो समझते तुम शायाद फिर ठहरते तुम

इतनी फुर्सत कहां थी तुम्हें मेरा हाल जो कभी बैठकर पूछते तुम।


अब तो बस सवाल है अफसोस है कुछ उमीद की रौशनी है

ना पछताते तुम ना पछताते हम गर जो लफ्ज़ों पर एतबार करते तुम।


अब एक खला है ज़िन्दगी में ख़ामोशी है सब धुआं धुआं सा है

आज भी ये समां हसीन होता हम होते एतबार होता मोहब्बत होती ,

यूं जो बे वाजाह रूठकर हमसे दूर ना होते तुम।


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