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Zuhair abbas

Abstract

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Zuhair abbas

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दर्द ए दिल

दर्द ए दिल

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मुझे रिहाई की आरज़ू है

खुदमे इतना उलझ गया हूं मैंं।


ना कोई दिल में चाहत को जगह है

ना ज़िंदगी से मज़ीद उम्मीद रखता हूं


तलाश ए वफा भी अब छोड़ चला हूं मैं

हर दिली उम्मीद को तोड़ चुका हूं मैं।


बिखरतें हैं खुवाब तो बिखर जाएं

अब आंखो से ख्वाबों को मिटा चुका हूं मैं।


ना किसी से बुगज़ ना मोहब्ब्त की जाती है

कुछ ऐसे ज़िन्दगी के मोड़ पर आकर रुका हूं मैंं।


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