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Amit Kumar

Tragedy Others

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Amit Kumar

Tragedy Others

इल्ज़ाम

इल्ज़ाम

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बड़ी बेबुनियाद सी बात है

कोई सुनता नहीं कोई समझता नहीं

दौलत के तराज़ू में

तौल रहा है कोई तुल रहा है कोई

जाने कौन बेबाक़ शिकारी ताक़ में है

इस मासूमियत की इस आदमियत की

कहने को हर कोई मुफ़लिस बंजारा

रहने को फुटपाथ फिरता मारा - मारा


घुटनों के बल चलते है वो तिफ़्ल बेचारे

जो सह -सवार कभी बने न

हर कोई इल्ज़ाम दे रहा है

बस एक दूसरे को दूसरा तीसरे को

जो जैसा मुखौटा पहने झूमता है

वो वैसा ही होगा यह कहना

मुश्किल ज़रा है....


दो अलग शख़्सियत है

एक ही आदमी की और

चेहरे न पूछो कितने होंगे

एक वो रावण जो नाज़ करता था

अपने दस सरों पर

आज वो भी इस इंसान से

घबरा रहा है...

और इंसान कह रहा है

ख़ुदा सो रहा है...



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