है तसल्ली
है तसल्ली
अब है तसल्ली कुछ तो कर रहीं हूँ मैं
आज अपने दिल की आवाज लिख रही हूँ मैं
आज लिख कर अपने द्वंद्व को
है मिल रही तसल्ली मुझको।
है तसल्ली कि हूँ जाग रही मैं
संकटों से नहींं भाग रही मैं
हूँ लिए इक नई राग मैं
जैसे हो रंगीले गुलाल फाग में
हूँ खेलती पानी के झाग से।
हो रही तसल्ली अपने उत्साह से
कर पा रही समन्वय दूसरों की आह से
है नहीं मतलब किसी समाज की वाह से
अब है गुजरना केवल मानवता की राह से
मानवता ! जो खो रही है नारी के दाह से।
है नहीं तसल्ली कि मूक दर्शक सी सब देख रहीं मैं
पर है तसल्ली कि सम्मान को लड़ रही हूँ मैं
आज उसकी पीड़ा की आवाज बन रही हूँ मैं
अब अस्तित्व के लिए अड़ना सीख रही हूँ मैं।
इन अपराधों को ना सह रही हूँ मैं
है गर्व किसी नारी की चेतना लिख रही हूँ मैं
अब है तसल्ली कि कुछ तो कर रही हूँ मैं।।
