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Anita Sharma

Drama Romance

4  

Anita Sharma

Drama Romance

अलहदा_इश्क़

अलहदा_इश्क़

1 min
357


उगते सूरज के साथ साथ जब,

सुलग उठती है तुम्हारी यादों की लौ,

जाग उठते हैं...अनछुए अनकहे कुछ पल,

जो रहते हैं सदाबहार जीवन भर!

खुद में ही रहते हुए...कुछ पल,

भागते वक़्त को खींच लाती हूँ,

जब लिखने बैठती हूँ रोज़ नियम से

अपनी हर श्वास का हिसाब,

समय मुस्कुराकर ठहर ही जाता है,

मेरी मनमानियों को सर पर बैठाता है,

संवाद करता भी है मुझसे...और,

किस्से बस तुम्हारे ही...सुनाता है,

पढ़ता है कुछ बेनाम बिखरी पड़ी चिट्ठियां,

मेरे चेहरे के हर हाव-भाव पर बाकि हैं जो,

क्यूँकि प्रेम नहीं किया उस वक़्त मैंने,

हाँ खुद प्रेम बनती चली गयी,

हर कुछ तो ख़ास था वक़्त वो भी

जो फना करता रहा मुझे मुझमें ही,

जो उतर आता था ढलती शाम के साथ,

जब अधखुली पलकों में...

जाग उठते थे जज़्बात,

पल पल गुज़रते पलों के साथ,

रंग नए उड़ते हुए...खिलखिलाने लगे,

जैसे हर करवट के संग जी उठती थी,

शायद हर पल नया जन्म लेकर,

सदियों से वक़्त ने मुझे और मैंने वक़्त को,

चुन लिया था एक हमराह की मानिंद,

बस एक वक़्त ही तो था जो सुन रहा है,

मुझे कबसे बिन रुके और….!

हमराही बने मैं और वक़्त,

कितने आयाम तय करते आये हैं,

बस एक तुम्हे सुनते हुए...हाँ बस तुम्हे!

फिर इत्तिफ़ाक़ 

क्यों कह दूँ इसको जब है ये,

मुकम्मल और यकीनन

अलहदा इश्क़ हमारा!


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