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Shashikant Das

Abstract Drama

4.5  

Shashikant Das

Abstract Drama

दशहरा!

दशहरा!

1 min
300


रंग बिरंगी इस धरती पर पर्वों की ये बेला जो आयी,

माता के दर्शन के संग त्रेतायुग की कहानी है दोहरायी ।


रामलीला के मैदानों में राम नाम लहराया,

हर वर्ष रावण के कठपुतली को खूब हमने है हराया ।


नये वेषभूषा में खूब हमारा रंग निखर आया,

मटमैले मन में फिर भी आज रावण नजर है आया।


पाठ्य पुस्तक के हर पन्नों पर राम को है दिखलाया,

जीवन के कर्मभूमि में सभी ने रावण को है अपनाया। 


दशानन की परिभाषा को कोई नहीं यहां जान पाया,

अंधेरे में आग लगा के भरपूर मजा उठाया। 


प्रेम और त्याग की कहानी को राम युग ने हैं सुनाया,

दुर्गुण संग कलयुग ने बड़ी छलांग है लगाया ।


दोस्तों, हर युग की संप्रभुता को क्यूँ नहीं अपने में समाया,

राम राज्य की लालसा में क्या हमने लंका को है बसाया?


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