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Dr Lakshman Jha "Parimal"Author of the Year 2021

Tragedy

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Dr Lakshman Jha "Parimal"Author of the Year 2021

Tragedy

" गुमसुम कविता "

" गुमसुम कविता "

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क्या करूँ ?आज कल कविता नहीं बनती ,कुछ रूठी -रूठी सी रहती है कविता मुझसे,

लाख मानता हूँ उसको पर वह मौनता की चादर ओढ़े रहती है !

गुमसुम किसी कोने में मन ही मन बिलखती रहती है !

नज़दीक जाके, उसे सहला के, प्यार से जब मैंने पूछा

तो उसने अपने दर्द बयां किया-“जख्म तो मेरे तन बदन में फैला है ,पर उपचार कहाँ होता है ?

अब कहाँ “दिनकर” यहाँ हैं ? कहाँ है कवियों में वो साहस ,वो चेतना ?

जो मेरे नब्ज को टटोलें असहिष्णुता ,रंगभेद ,हिंसा ,बलात्कार नारी असुरक्षा ,

हिन्दू मुस्लिम की पीड़ा को भला अपने तराजू में तौलें ?

नर संहार बच्चे ,बूढ़े ,औरत का विश्व में हो रहा है !

कवि तो सिर्फ अपनी ख्याति के लिए जदोजहद कर रहे हैं

सब अपनी सही कविता को लिखना भूल गए हैं !!


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