गरीबों की बस्ती
गरीबों की बस्ती
कहते हैं कि...
गरीबों की बस्ती में...
भूख और प्यास बसती है,
आँखों में नींद मगर
आँखें सोने को तरसती है...
गरीबों की बस्ती में...
बीमारी पलती है...
बीमारी से कम यहाँ
भूख से ज्यादा जान जलती है...
गरीबों की बस्ती में...
लाचारी बसती है...
पैसे की लेनदेन में ही
जिंदगी यहाँ कटती है...
गरीबों की बस्ती में...
शोर शराबा चलता है...
भूख और लाचारी का शोर
लोगों को ढोंग लगता है...
गरीबों की बस्ती में...
फटे कपड़ों में जब बेटी चलती है...
परवाह उसकी इज्जत की
कौन करे,
जब इज्जत को दुनिया
कपड़ों से तोलती है...
गरीबों की बस्ती में...
हर एक ख्वाब
ऊँचाई छूने का देखा जाता है,
कौन बताए गरीब से कि
ऊँचाई से हर बंदा
गरीब नजर आता है...
गरीबों की बस्ती में...
सपने टूट जाते हैं...
यही टूटे सपनों के काँच
कचरे में कभी कोहिनूर बन
खिल आते हैं....
गरीबों की बस्ती में...
हर चीज़ सस्ती होती है,
रोटी से लेकर इज्जत तक
हर चीज का दाम,
ये रोज चुकाती है...
गरीबों की बस्ती में...
कहीं कोई अमीर
पल रहा होता है...
यही अमीर कल
औरों को गरीब बोलता है...
गरीबों की बस्ती में...
ऐश और आराम की कमी है...
इनकी जरूरत कम मगर
फिर भी कुछ माँग अधूरी है...
गरीबों की बस्ती में...
नफरत के बीज बोते हैं...
हर दिल को छान मारो
यहाँ लोग अक्सर
मिल के रोते हैं...
गरीबों की बस्ती में...
बेशक गम के रास्ते
और मुश्किलों के पहाड़ है...
इन्हीं रास्तों में प्यार और
जीने की राह है....।