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Harshad Molishree

Romance

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Harshad Molishree

Romance

हिस्सा...

हिस्सा...

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मेरे हिस्से के जूते मांगता हूं

जो जूते पड़ते रहे है किस्मत

पर मेरी

हां बस वही जूते मांगता हूं

मुझे ग़म नहीं है के मेरी

किस्मत पर ताले लगे है

मैं उन तालों की चाबियाँ नहीं

मांगता हूं

मुझे ना दो वो ख़ुशियाँ जो तुम

उधार में देना चाहो

मुझे दे दो वो हज़ार ग़म जो तुम

दिल से देना चाहो

मुझे खुश रहना हर हाल में आता है

मैं अपने हिस्से का ग़म मांगता हूं

तेरे ग़म से अंजान ही सही मैं


तू भी मेरे ग़म से वाक़िफ़ नहीं

मैं तुम्हारा प्यार तुम्हारे मर्ज़ी के

खिलाफ नहीं

मैं अपने हिस्से का दर्द मांगता हूं

तुझे आज़ादी मिली तेरी शर्तों पे

मुझे चाहे ना मिली राहें भटक गया

मैं अंजान सड़को पे

तू होगी शायद मंज़िल मेरी पर

मंज़िल नहीं मांगता हूं

मैं तो सिर्फ अपने हिस्से का

सफर मांगता हूं....


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