गीतिका
गीतिका
तुम पर गीत लिखूँगा सुंदर।
पहले ढूँढ तो लूँ मैं विषधर ।।
हम तो झरना दरिया तक ही,
बनूँ नहिं खारा मीत समन्दर।।
रूपराशि धनबल शोहरत ये,
जग से रीते सारे गए सिकंदर।।
यह अहंकार का व्यर्थ लबादा,
ये झूठी आँधी मिथ्य बवंडर।।
सतचित आनंद परमब्रह्म जो
वह अविनाशी मस्त कलंदर ।।
झुकी पलक लजरायी स्मिति,
मोहिनी मूरत सौम्य जो अंदर।।
रखें तरलता ह्रदय नद्य सम,
क्यों बन जाएं जड़ रत्नाकर ।।
प्रखर मांगता भव तारायण,
शरण शिवा गिरिजेश विश्वंभर।।
